Pratapgad Fort

Pratapgad Fort History | प्रतापगढ़ किले का इतिहास

प्रतापगढ़ किले का परिचय

pratapgad fort history इस किले को 1856 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने बनवाया था। शहर से 20 किमी. दूर इस किले में ही शिवाजी ने अफजल खान को मौत के घाट उतार दिया था।समुद्री तल से 1000 मीटर ऊंचाई पर स्थित इस किले में मां भवानी और शिव जी का मंदिर है।

Also Read : Shivaji Maharaj History HD Photos

प्रतापगढ़ किले का इतिहास

आसपास पहाड़ों और गहरी घाटी वाले महाबलेश्वर( के नज़दीक प्रतापगढ़ किले की आन, बान, शान। छत्रपति शिवाजी महाराज और अफज़ल खां की मुलाकात के समय से ही बरकरार है। मुलाकात से अफज़ल खां, शिवाजी महाराज के व्यक्तित्व से काफी प्रभावित हुआ था। उनकी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाया था लेकिन मौका पाते ही उसने शिवाजी के ऊपर पीछे से वार कर दिया। कपड़ों के अंदर लोहे का कवच होने की वजह से उन्हें किसी तरह की चोट नहीं आई थी। इसके जवाब में शिवाजी महाराज ने हाथों में पहने बाघनाख ने उस पर वार कर उसका पेट चीर दिया था।

Also Read : डॉ बाबासाहेब आंबेडकर के राज आज तक कोई नही जान पाया

किले की बनावट

प्रतापगढ़ किला शिवाजी की वीरता का प्रतीक है। किले के अंदर ही एक दूसरा किला भी था। दो भागों में बंटा इसका निचला किला 320 मीटर लंबा और 110 मीटर चौड़ा है वहीं ऊपरी किला 180 मीटर लंबा है। ऊपरी किले में महादेव का मंदिर है मंदिर के बिल्कुल सामने विशाल दरबार का आयोजन किया जाता था।जिससे मंदिर के सामने बैठकर कोई किसी भी प्रकार का झूठ न बोल सके।

भवानी मंदिर

ऐसा माना जाता है कि सन् 1661 में छत्रपति शिवाजी महाराज ने इस मंदिर की स्थापना की थी। मंदिर में 50 फीट लंबे, 30 फीट चौड़े और 12 फीट ऊंचे खंभे लगे हैं। मंदिर में प्रवेश करने के लिए नगाड़ा हॉल से होकर गुजरना पड़ता है। जहां पर एक बड़ा ड्रम रखा हुआ है जिसकी गूंज खास उत्सवों पर सुनने को मिलती है। यहां मराठा सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने भाले और भी दूसरे तरह के औज़ार देखन को मिलेंगे। मंदिर के अंदर आठ भुजाओं वाली देवी भवानी की साड़ी में मूर्ति विराजमान है। मंदिर में छत्रपति शिवाजी की तलवार भी रखी हुई है। जिससे उन्होंने अकेले प्रतापगढ़ की लड़ाई में अफज़ल खां की सेना के 600 सैनिक मारे थे।

pratapgad fort history

Also Read : Gautam Buddha History

हनुमान मंदिर

शिवाजी महाराज के गुरू रामदास स्वामी ने इस मंदिर को यहां स्थापित किया था। मंदिर की खास बात है कि यहां विराजमान हनुमान जी का ऐसा रूप कहीं भी दूसरी जगह नहीं मिलता।

महाबलेश्वर में कर सकते हैं एन्जॉय

प्रतापगढ़ फोर्ट देखना बेशक एक अच्छा एक्सपीरियंस साबित होगा। लेकिन यहां आकर महाबलेश्वर नहीं घूमा तो बहुत कुछ मिस करने जैसा होगा। वीकेंड में आप यहां रूककर पहाड़ों और घाटों और आसपास के खूबसूरत नज़ारों को एक्सप्लोर कर सकते हैं। वेना लेक में बोटिंग का मजा ले सकते हैं। इसके अलावा आर्थर सीट भी बहुत ही रोमांचक जगह है। इस जगह का नाम आर्थर सीट इसलिए पड़ा क्योंकि यहां सर आर्थर मालेट बैठकर सावित्री नदी को देखा करते थे। जिसमें एक घटना के दौरान उनकी पत्नी और बच्चे खो गए थे। विल्सन प्वाइंट महाबलेश्वर का सबसे ऊंचा प्वाइंट है जहां से उगते और ढलते सूरज को देखना वाकई यादगार होता है।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.